जाने इस्लामी ज़बीहा और इसके साथ कैसे रिश्ता है सांइस का ?

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रिपोर्टर.

गोश्त वो लज़ीज़ खाना है कि शायद दुनिया में बहुत कम लोग ही होंगे जो इससे ना आशना हैं।
तक़रीबन हर मज़हब व हर क़ौम में ही गोश्त खाया जाता है ।

जानवर को मार कर खाने का अलग अलग तरीका अलग अलग कौम में रायज है।
मगर जानवर को ज़बह करने की जो तरक़ीब इस्लाम ने बताई उसमें कई हिकमतें हैं,मुलाहज़ा करें !

ज़्यादातर लोगों के यहां जानवर ज़बह करने का ये तरीक़ा है कि जानवर की गर्दन पर पीछे से छुरा चापड़ या आरे से ऐसा वार करते हैं कि जिससे उसका पूरा सर धड़ से अलग हो जाता है ।

इसे झटके का गोश्त कहते हैं,इसकी साईंसी हैसियत ये है कि झटका करने में उसकी रीढ़ की हड्डी कट जाने के बाईस जानवर का दिमाग फौरन जिस्म से रिश्ता तोड़ देता है और पूरा जिस्म बे हरकत हो जाता है, ज़ख्म से सिर्फ उतना ही खून निकलता है जितना कि उसके आस पास मौजूद होता है।

बाकी का खून गोश्त में जज़्ब होने लगता है जिससे कि गोश्त बदरंग बे मज़ा और बदबूदार हो जाता है।
,अक्सर मशीनों से भी जानवर इसी तरह ज़बह किये जाते हैं इसे गिलोटिन कहते हैं !

दूसरा तरीक़ा ये नया निकाला गया है कि जानवर को एक कटहरे में ले जाया जाता है जहां उसके सर पर एक हथौड़े या भारी चीज़ से चोट दी जाती है इसे बबोटेयर कहते हैं ।
फिर इस अकड़े हुए मजरूह जानवर को कुछ इस्लामी नकल से ज़बह की शक्ल देते हुए निस्फ गर्दन काटी जाती है !

मगर इस तरह उसके सर पर चोट की वजह से उसके जिस्म में हिस्टामिन पैदा हो जाती है जो कि क़ुर्आन के उसी हुक्म में शामिल हो जाता है जो टक्कर मारे हुए और लाठी से मारे हुए जानवर को है यानि मना,ऐसे गोश्त से एलर्जी और स्किन प्राब्लम होती है!

अब आईये इस्लाम का तरीक़ा देखते हैं जब जानवर को लिटाकर उसके गले पर छुरी चलाई जाती है।
तो खून की नस कटते ही जानवर फौरन बेहोश हो जाता है और उसकी तक़लीफ का एहसाह खत्म हो जाता है ।

गालेबन ये दुनिया की सबसे आसान मौत है जिसमे बस उतने ही सेकंड की तकलीफ है जितना कि गले पर छुरी चलाने में लगती है शायद 4 से 5 सेकंड।

लंदन के एक डॉक्टर लार्ड हावर्ड ने लिखा कि मैंने इस्लाम में ज़बह का वो तरीका देखा है कि बगैर तकलीफ और दर्द के जानवर की मौत पुर सुकून अंदाज़ में होती है!

मैं यही तमन्ना करता हूं कि मुझे भी ऐसी ही मौत आये!
खैर अब आगे बढ़ते हैं चुंकि हराम मग्ज़ तक छुरी नहीं चलाई जाती इसलिए दिमाग का ताल्लुक जिस्म से बना रहता है।

दिल से लेकर सर तक जो खून की रगें जाती हैं उनसे तेज़ी से खून बाहर आता है जिससे जानवर तड़पने लगता है और इसी हालत में अपने पैरों को खूब झटकता है।
जिससे कि जिस्म के आखिरी हिस्से तक रुका हुआ खून भी निकल जाताहै ।

यानि गोश्त जिस्म के खून से साफ हो जाता है, इसकी वजह से उसे कई दिन तक भी रखा जाए तब भी वो बे मज़ा नहीं होता और ना ही उसमें बू आती है!

आज के दौर में सिवाये मुसलमान के यहूदी ही ऐसी कौम है जो इस्लाम की तरह ही जानवर को ज़बह करती है ।
मगर चुंकि वो भी इस्लामी अक़ीदे से फिर गए हैं सो उनका ज़बीहा भी मुर्दार के हुक्म में है यानि हराम है!

इसलिए हम मुसलमानो का ज़बीहा अल्लाह जल्ला शानहु व उसके महबूब हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के हिसाब से तो है ही मगर साईंसी ऐतबार से भी सबसे बेहतर और अफ्ज़लो आला है!

 

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